खालसा कालेज पब्लिक स्कूल में सारागढ़ी की 125 वर्षीय शताब्दी को समर्पित प्रोग्राम करवाया गया

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योद्धे इतिहास बनाते है : छीना

अमृतसर 9 सितंबर

 

विश्व प्रसिद्ध सारागढ़ी का युद्ध जोकि अफगानिस्तान सीमा की पहाड़ियों पर स्थित उक्त चौकी पर 12 सितंबर 1897 को घटित हुआ का अब तक का युद्ध में एक विशेष दर्जा है। आज उक्त युद्ध में शहीद हुए शहीदों की 125 वर्षीय शताब्दी को समर्पित खालसा कालेज पब्लिक स्कूल में प्रोग्राम करवाया गया। 36 सिख रेजीमेंट के 21 जांबाज सिख सिपाहियों की अनोखी गाथा है जिन्होंने दस हजार के करीब ओकरजाई व अफरीदी कबाइलियों का अपने अंतिम सांस तक डट कर बेखौफ सामना किया।

 

स्कूल प्रिंसिपल अमरजीत सिंह गिल के सहयोग से ब्रिटिश सरकार के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले इन 21 सिख योद्धाओं की याद में समर्पित प्रोग्राम के अवसर पर मुख्य मेहमान के रूप में खालसा कालेज गवर्निंग कौंसिल के आनरेरी सचिव राजिंदर मोहन सिंह छीना, सारागढ़ी फाउंडेशन के चेयरमैन गुरिंदर पाल सिंह जोसन, प्रधान ब्रिगेडियर जतिंदर सिंह अरोड़ा कौंसिल के संयुक्त सचिव संतोख सिंह सेठी, सरदूल सिंह मनन आदि ने विशेष तौर पर शिरकत की।

 

इस अवसर पर छीना ने संबोधन करते हुए कहा कि योद्धे इतिहास को सृजित करते है। सारागढ़ी जंग की सृजन अपने खून का आखिरी कतरा बहा कर 21 बहादुर सिख योद्धाओं ने की। सिख एक ऐसी कौम है जो विश्व में अपनी दरियादिली के साथ साथ बेमिसाल बहादुरी व कुर्बानी के फलस्वरूप सम्मानीय है। सिखों ने जहां मजलूमों, लाचार व अन्य धर्मों की रक्षा की खातिर हंसते हंसते अपना बलिदान दिया है। वही विदेशों में बसते पंजाबियों ने वहां के मुल्कों की उन्नति व खुशहाली अपना अहम योगदान पाया।

 

छीना ने सारागढ़ी युद्ध संबंधी बातचीत करते हुए कहा कि जब उक्त जंग छिड़ी तो पठान इस बात से भलीभांति अवगत थे कि सिख भी बहादुर है। उनकी तरह चारों दिशाओं में कोई सानी नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि इतिहास को देखते तो शेर-ए-पंजाब महाराजा रंजीत सिंह के खालसा राज के दौरान कई हजार साल पहले सिखों ने पठानों को हराया । वह भी उनकी जन्म भूमि पर जिसमें खालसे के मान जनरल हरि सिंह नलवा ने खालसाई निशान साहिब किला जमरोद से अटक दरिया के पार तक झुला दिया था।

 

इस अवसर पर जोसन ने अपने संबोधन में सिखों के बलिदान इतिहास के बारे अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि समाना रेंज का इलाका एक हजार साल से अधिक समय तक भारतीय उपमहाद्वीप के लिए रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण रहा है।

 

जोसन ने कहा कि सारागढ़ी के उक्त योद्धाओं की शहादत के 125 वर्षीय शताब्दी के संबंध में आज यह प्रोग्राम बनाया गया है। उन्होंने कहा कि सारागढ़ी की चौकी में 21 सिखों में तीन की आयु 38 से 40, 10 की 27 से 30 शेष की 23 से 26 के मध्य थी। शहीदी के समय हवलदार ईशर सिंह की आयु 39 साल थी व सिग्नल मैन गुरमुख सिंह 23 वर्षीय नौजवान था। इस लड़ाई के दौरान 36 सिख रेजीमेंट के गोरे अफसरों ने ली-मेटफोर्ड राइफलों का प्रयोग किया सिख सिपाहियों ने मारटिनी हेनरी राइफल, जबकि पठाना ने पख्तून क्षेत्र की अपनी परंपरागत राइफल जैजल का इस्तेमाल किया। उन्होंने इस अवसर पर अपनी उक्त युद्ध पर लिखी पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा कि इस पर कई फिल्मों का निर्माण हुआ है। जिनमें अक्षय कुमार की अदाकारी में केसरी दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र रही।

 

 

इस अवसर पर श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार प्रो. मंजीत सिंह ने सारागढ़ी युद्ध में 21 सिखों की दलेरी की अदभुत शहादत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अल्प संख्यक सिख कौम ने भी कई ऐतिहासिक य ुद्ध लड़े जोकि इतिहास के सुनहरी पन्ने में दर्ज है।

 

इस अवसर पर प्रिसंिपल गिल ने आए हुए मेहमानों का धन्यवाद करते हुए कहा कि बड़े फख्र की बात है कि आज सारागढ़ी के महान जांबाज सिपाहियों की शताब्दी के लिए स्कूल मैनेजमेंट को सेवा का मौका दिया गया है। हम आज उन युद्धों के मध्य शहीद हुए महान सिखों को श्रद्धांजलि भेंट करते है। इस अवसर पर फाउंडेशन के रवनीत कौर बावा, खालसा कालेज फिजिकल एजूकेशन प्रिंसिपल डा. कवंलजीत सिंह, खालसा कालेज पब्लिक स्कूल हेर प्रिंसिपल गुरविदंर कौर कंबोज, खालसाकालेज इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल प्रिसंिपल निर्मलजीत कौर गिल आदि मौजूद थे।