संसद में जनता की बात भी करें माननीय

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भारत देश के लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में जनता के हित की कोई बात नहीं हो रही। लोग हैरान परेशान हैं। सरकार चाहे आर्थिक विकास दर जीडीपी की जितनी बड़ी बड़ी बातें करें, लेकिन इस देश का गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोग मुंह उठाए देखते हैं। कान लगाकर सुनते हैं कि संसद में उनके लिए एक शब्द कहा जाएगा। वित्त मंत्री और अन्य मंत्रियों की यह घोषणाएं सुनकर हैरानी होती है कि क्या इस सरकार को पता नहीं कि जो व्यक्ति चौदह साल पहले तीन चार सौ रुपये में परिवार पालता था, उसे आज भी इससे ज्यादा नहीं मिला। हर चीज महंगी हो गई है। कभी कहा जाता था कि दाल रोटी खाएंगे, अब तो दाल गरीब की पहुंच से दूर हो गई। आटा बहुत महंगा हो गया। सब्जियां पहुंच के बाहर हैं। क्या वित्त मंत्री ने बजट बनाते समय और सरकारों ने भाषण देते समय बजट की सराहना करते हुए उन गरीबों को सुना जो बड़ी मुश्किल से नमक आटा जोड़कर परिवार की रोटी चलाते हैं। अच्छा तो यह होगा कि कम से कम एक महीने के लिए यह सारे संसद में बैठे लोग अरबपति, करोड़पति, चार सौ या तीन सौ रुपये प्रतिदिन में अपने परिवार को रोटी खिलाकर, बिजली पानी का किराया देकर देखें। उनकी क्या हालत हो जाएगी, इसलिए सभी संसद सदस्यों से, मंत्रियों से मेरा यह कहना है कि इस तरह आरोप प्रत्यारोप न लगाओ, जिस तरह लोग सड़कों या गलियों में लड़ते हैं। जनता को कुछ दो, उतना तो दे दीजिए जितना संसद सत्र पर अरबों रुपये आपने खर्च कर देने हैं।

लक्ष्मीकांता चावला